Islamic best sayri collection on sayrs

मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे
के दाना खाख में मिलकर गूलैं गुलज़ार बनता हे।। अल्लामा इक़बाल

















Tamanna Dard-e-Dil ki ho to kar khidmat faqeeron ki.

Nahin milta ye Gauhar Badshaho ke Khazinon mein.
















Tu idhar udhar ki na baat kr
Ye bta ke kafila q loota?
Muje rahzano se gila nahi,
Teri rehbari ka sawaal hai..!! Hz allama iqbal rh.
















मोहब्बत" समेट लेती है..ज़माने भर...के रंज-ओ-गम ,सुना है ...सनम अच्छा हो तो ...काँटे भी नही चुभते....✍















कत्ल करने का है अन्दाज़  पुराना उसका,


देखो होठो पे सजाया है तबस्सुम फिरसे।


















इलाज ये है की मजबूर कर दिया जाऊँ
"
"
वरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैंने !
















खुदा  भी  उसकी  दुआए  क़बूल  करता  है

फ़क़ीरे  शहर  को  मत  देखिये  हिक़ारत से
















तेरे चेहरे की चमक से दिखाई देता है.
तू ,किसी शायर की गजल रही होगी.
















सेल लगी थी...मोहब्बत के
बाजार में इश्क की चादर के साथ कफन फ्री..














मोहब्बत की महक पाकर ख़ुशी से फूल जाती है

लगे  जिस  वक़्त माँ  का  हाथ रोटी मुस्कुराती  है
















मुफलिसों के बदन को भी होती हे कपडॉ कीे ज़रूरत
अब ये एलान खुलकर मजारो पर किआ जाए।।














✍��लिखने वाले ने क्या खूब लिखा है.......

"जिंदगी जब 'मायूस' होती है ..........तभी 'महसूस' होती है...!


















हम जो एक होते तो सब कुछ उथल पुथल होता*
*जो अपने मुंह से निकलता वो ही अटल होता,*

*हमारे अपने ही मोहरे बिखर गए वरना*
*जो बन के बैठा है अकबर वो बीरबल होता,*

*बड़े सलीके से तक़सीम कर दिया है हमें,*
*अगर ये शाख़ न कटती तो आज फल होता..!!















Bhula deta huN kuch pal ke liye main ranj-o-gham saare.

Mujhe jab yaad aata hai tumhara muskuraa dena..













मुफलिसों के बदन को भी होती हे कपडॉ कीे ज़रूरत

अब ये एलान खुलकर मजारो पर किआ जाए।।

















प्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है
इक बादल से बड़ी आस लगा रखी है
"
तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं
इन चिरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है
"
तेरी बातों को छिपाना नहीं आता मुझको
तूने खुश्बू मेरे लहज़े में बसा रखी है
"
खुद को तन्हा ना समझ लेना नये दीवानो
खाक सहराओं की हमने भी उड़ा रखी है
"
क्यूँ न आ जाए महकने का हुनर लफ़्ज़ों को
तेरी चिटठी जो किताबों में छुपा रक्खी है


















जरूरत से अना का भारी पत्थर टूट जाता है

मगर फिर आदमी भी अंदर ही अंदर टूट जाता है

खुदा के वास्ते इतना न मुझको टूटकर चाहो

ज्यादा भीख मिलने से गद़ागर टूट जाता है

तुम्हारे शहर में रहने को तो रहते हैं हम लेकिन

कभी हम टूट जाते हैं कभी घर टूट जाता है !

Altaf Raja

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